Monday, August 19, 2013

मिथिलाक ब्रह्म पूजा

मिथिला में शदियों स ब्रह्म पूजा केर विशेष महत्व अछि . दू दिन तक होमय वाला एहि विशेष पूजा अत्यंत नियम निष्ठा एवं श्रद्धा स करल जायत अछि . एहि पूजनोत्सव में समस्त कुलदेवी कुलदेवता संग ब्रह्म बाबा एवं विषहर भगवान के सेहो अराधल जायत अछि . कुलदेव कुलदेवता भगत पर आबि के पीड़ित के कल्याण करैत छथिन एवं सकल जन के कल्याण करैत छथिन . उत्सुकता कौतुहल एवं सजीव श्रद्धा के अद्वितीय अनुभव होयत अछि .


















Thursday, August 15, 2013

अभी सुबह हुई नहीं है

अभी सुबह हुई नहीं है .

अभी अभी घोर अंधियारे को
चिर के एक आभा फैली है .
पर लगता है अभी सुबह हुई नहीं है .

अभी निशाचर मौजूद हैं शाखाओं पर
और झाडियों के पीछे घात लगाये .
निडर पथिक चल पड़ा है मंजिलों को
पर लगता है अभी सुबह हुई नहीं है .

कहीं दूर अभी भी गिदरों की भभकी गूंज रही है .
और टीले पर गिद्ध भी मंडरा रहा है .
अब इस अडिग पथिक को कौन बताये
की सुबह अभी हुई नहीं है .

चाँद भी अब चांदनी को समेट रहा है .
तारा भी आवरण को लपेट रहा है .
सियार अभी भी राह पथिक की देख रहा है .
क्या वाकई अभी सुबह हुई नहीं है .

चमगादरों की फरफराहट
झींगुरों की झुनझुनाहट
नदी किनारे के बरगद से आ रही है .
अब मान भी जाओ पथिक की सुबह हुई नहीं है .

Wednesday, August 14, 2013

फर्ज भारती के पुत्र होने का

फर्ज भारती के पुत्र होने का ...


पन्द्रह अगस्त की पूर्व संध्या पर
दो आंखे दो हाथ और
एक खंडहर सा जिस्म
खुद को लपेटे गुदरी में
धो रही थी कुछ कपड़ो को
नलके पे सड़क किनारे
उसके आँखों में आंसू देख
सवाल उठे मेरे मन में
हिम्मत ही ना हुई
की पूछ लूँ और पोछ दूँ
बस मैं खड़ा रहा और
उस भारती को देखता रहा
उस कपड़े पर जब मेरी नजर पड़ी
चौंक उठा सहसा ये देख कर
की ये तो वही स्कुल ड्रेस है
जो सरकार मुफ्त में देती है
इनके बच्चो को
मगर क्या ये वाकई मुफ्त होता है ?
पूछ लिया मैं उस हिंद की नारी से .
तो गुस्साई , किस ने कहा मुफ्त में ?
दो सौ रूपये दिए किरानी को
आय वाला कागज बनाने को .
चार सौर रूपये दिए टेलर को
बेटे के नाप का सिलाने को .
बनिए से गहना पर लिया है .
दस टका महीने का दिया है .
कल है पन्द्रह अगस्त .
स्कुल में मिठाई बंटेगा .
सारे बच्चे स्कुल ड्रेस में जायेंगे .
हम अपने भारत को भी
एक झंडा दिलाएंगे .
प्रभात फेरी में इस बार
वही तो स्कुल का बैनर थामेगा .
फर्ज भारती के पुत्र होने का
इस बार वो निभाएगा .
कहती हुई वह उठी गर्व से
और फैला दिया कपड़े को दिवार पर .
मैं भी वहाँ से निकल घर को आया .
घर आते ही मेघ जोड़ से गुर्राया .
झमाझम झमाझम बरस रही है .
सबके मन को वर्षा आज हरष रही है .
पर भारती तो बस धुप के लिए तरस रही है .
सोंच रहा हूँ वर्षा आज सारी रात ना हो जाये .
और भारती की मन की मन में बात ना रह जाये .

Tuesday, August 13, 2013

इनकलाबी रोटी

इनकलाबी रोटी :

आज फिर एक चिंगारी उठी .
उठी , इतना भी नहीं ....
की शोला बन जाये .
आज फिर लगी नसें फरफराने .
लगी , इतना भी नहीं की
लहू उबल का बाहर आ जाये .
आज फिर कुछ करने की तमन्ना हुई .
हुई , इतना भी नहीं की
सर पे कफ़न होठों पर इन्कलाब आ जाये .
चलो फिर कोशिश करता हूँ .
दिल को चूल्हा ,
धरकन को तवा बनाता हूँ .
इरादों के जलावन में .
हौसले का चिंगारी लगता हूँ .
शायद तभी वतनपरस्ती
की रोटी पकेगी .
भूख तो बहुत है .
और मेवे भी बिखरे पड़े हैं .
इधर उधर .
पर भूख तो मेरी
उसी इंकलाबी रोटी से मिटेगी .
----मुकेश  पंजियार 

Sunday, August 11, 2013

बोलबम - यात्रा जयनगर से कपिलेश्वर स्थान की .

फोटो गैलरी : बोलबम - यात्रा जयनगर से कपिलेश्वर स्थान की .