Saturday, April 27, 2013
Friday, April 19, 2013
हम्मर बात हमरे भाषा में
हम्मर बात हमरे भाषा में
देखिये जेना मैथिली आ हिंदी हमरा लोग का भाषा है ओन्हैते इहो हमरा लोग का एगो जरसी भाषा हुआ !
आ दुन्नु से बेसी मेहनत लगता है ई भाषा मे लिखे मे !त आगा सुनिए .....
अरे नहीं मानिए भाई हमरी बतिया !
हम तो ठहरे अधजल गगरी !
तनी मनी त छलकबे करेंगे !
अभी कुच्छे देर पहिले बिजली कहीं और चली गयी !
तो हमारी मिसेज हमको अँधेरा मे देख लालटेन जला इस "टिपटिपिया" के बगल मे रख दी आ बोली की झूठो का खाली भर दिन टिपटिपाते रहते है, कुछ फायदों होता है की नहीं !
अब भाई मुझे आपसे बतियाना था सो मैंने अपने मुंह पर फेविकोल लगा लिया और फेर से टिपटिपाने लगा !
लालटेन को देख कर कुछ याद आया तो पहुलका लिखलाहा सब मेटा दिया और नबका उपदेश लिखने लगे !
अगर सुनना हो तो कोमेंट कर के बोलियेगा !
न ही त काहे ला झूठो के मच्छर से कटवा कटवा कर लिखेंगे !
मगर बात है बहुत मजेदार मिंटो फ्रेस की तरह !
देरी के लिए एक हाथ से माफ़ी मांगते हैं !
का है ना की दोसर हाथ से मच्छरों ना मारना पड़ता है !
अब देखिये इस बैज्ञानिक सब का कमाल सौसे इंसानियत को खतम करने का हथियार बना लिया है मोदा एगो मच्छर के खात्मा ई बैज्ञानिकबा सब से नहीं हुआ है |
दक्षिण भारत मे एगो साइकिल पर लील टिनोपाल बेचे बाला पर ई मच्छर के वजह से एतना बड़का पैसा वाला बन गया की दू साल पहिले केतना दून करोड के कंपनी का मालिक बन गया !
ना ही पहिचाने !
अरे उहे मैक्सो का मालिक जो पहिले उजाला बनाया और फेर मैक्सो !
पन्द्रह हजार से धंधा इसटाट किया था !
आ आज हमको लगता है की पैसो गिनने के लिए अलग से आदमी सब रखले होगा !
आ एगे हमरे बगल का राम खेलावन है जिसको पान दोकान खोलने मे एक लाख लग गिया !
आ उहो कोनों कम बरका जासर नहीं है !
जासर काहे का ?
अरे भाई जब कोनों कुमार लड़का बियाह लक्चीयैल मे दोकान खोलेगा त ओकर मतलब समझाबे पड़ेगा का आप सब बुद्धिमान लोग को !
अरे दहेज के लिए भाई ! बिहा होने वाला है एक लाख फसाया है तो पांच लाख कमैबो करेगा ना !
खैर छोड़िये हम त ट्रेक से चेंजे हो गए ! आ असल मुद्दा त छोड़ दिए भाई !
अच्छा पहिले इतना पढ़ लीजिए आ नीक लगेगा त बोलियेगा त आरो मैन बात सब बजेंगे !
का है ना की दोसर हाथ से मच्छरों ना मारना पड़ता है !
अब देखिये इस बैज्ञानिक सब का कमाल सौसे इंसानियत को खतम करने का हथियार बना लिया है मोदा एगो मच्छर के खात्मा ई बैज्ञानिकबा सब से नहीं हुआ है |
दक्षिण भारत मे एगो साइकिल पर लील टिनोपाल बेचे बाला पर ई मच्छर के वजह से एतना बड़का पैसा वाला बन गया की दू साल पहिले केतना दून करोड के कंपनी का मालिक बन गया !
ना ही पहिचाने !
अरे उहे मैक्सो का मालिक जो पहिले उजाला बनाया और फेर मैक्सो !
पन्द्रह हजार से धंधा इसटाट किया था !
आ आज हमको लगता है की पैसो गिनने के लिए अलग से आदमी सब रखले होगा !
आ एगे हमरे बगल का राम खेलावन है जिसको पान दोकान खोलने मे एक लाख लग गिया !
आ उहो कोनों कम बरका जासर नहीं है !
जासर काहे का ?
अरे भाई जब कोनों कुमार लड़का बियाह लक्चीयैल मे दोकान खोलेगा त ओकर मतलब समझाबे पड़ेगा का आप सब बुद्धिमान लोग को !
अरे दहेज के लिए भाई ! बिहा होने वाला है एक लाख फसाया है तो पांच लाख कमैबो करेगा ना !
खैर छोड़िये हम त ट्रेक से चेंजे हो गए ! आ असल मुद्दा त छोड़ दिए भाई !
अच्छा पहिले इतना पढ़ लीजिए आ नीक लगेगा त बोलियेगा त आरो मैन बात सब बजेंगे !
Thursday, April 18, 2013
Friday, April 12, 2013
भगवती वंदना
बोल दे माँ वैष्णवी दुर्गा महरानी गिलेशन वासिनी की ........ जय !
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
दुनिया अछि रूठल ! भागो अछि फुटल !
दुनिया अछि रूठल ! भागो अछि फुटल !
दोसर हम ककरा नग कनब !
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
दोसर रूसे त हम सहि लेबई !
तू रुसबे त ककरा नग जेबई !
मोनSक बात हम तोरे स कहब!
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
निज संतान जानी, तू नई बिसरिहें !
कोरे लगा के मै गई हमरा के रखिहें !
जिनगी भरि की हम बकलेले रहब !
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
दुनिया अछि रूठल ! भागो अछि फुटल !
दुनिया अछि रूठल ! भागो अछि फुटल !
दोसर हम ककरा नग कनब !
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
रचनाकार -- मुकेश पंजियार
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!

दुनिया अछि रूठल ! भागो अछि फुटल !
दुनिया अछि रूठल ! भागो अछि फुटल !
दोसर हम ककरा नग कनब !
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
दोसर रूसे त हम सहि लेबई !
तू रुसबे त ककरा नग जेबई !
मोनSक बात हम तोरे स कहब!
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
निज संतान जानी, तू नई बिसरिहें !
कोरे लगा के मै गई हमरा के रखिहें !
जिनगी भरि की हम बकलेले रहब !
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
दुनिया अछि रूठल ! भागो अछि फुटल !
दुनिया अछि रूठल ! भागो अछि फुटल !
दोसर हम ककरा नग कनब !
गे माँ, तोरे शरण हम रहब!
गे मैया, तोरे शरण हम रहब !
रचनाकार -- मुकेश पंजियार
Saturday, April 6, 2013
माँ के भजन
देखय लेल मैया के रूप सुहावन !
मंदिर में लागल कतार यौ !
गुंजई छै जय जयकार यौ !
गामे चलि आऊ यौ "आनंद" जी !
लागल माता के दरबार यौ !!
आब गामे चलि आऊ यौ आनंद जी!
लागल माँ के दरबार यौ !!
कहने रही जे चैत मे एमरी हम घरे आयम !
खोइचा भरम मैया के चुनरी माई के चढायम !!
एहि लेल केलौं नोबाइल यौ सजना !!
पाड़े लेल अहाँ के धियान यौ !
समय नई करू जियान यौ !!
गामे चलि आऊ यौ "राहुल" जी !
जायम संगे भगबत्ती थान यौ !!
शेर पर सवार मैया के लेबई हम एमरी मनाई !
मंग्बाई समांग बौआ के अंचरा आपन फैलाई !!
घर पर बैठेबई कलशा एहि बेर !
मोन मे अछि विचार यौ !
पुरहित के देलियन हकार यौ !!
संगे अहूँ चलि आयम यौ "मुकेश" जी !
सजल अछि माँ के दरबार यौ !!
रचनाकार --- Mukesh Panjiyar
Wednesday, April 3, 2013
तालाब से मिली प्राचीन मूर्ति
तालाब से मिली प्राचीन मूर्ति
दिनांक 2फरवरी 2010 को मधुबनी जिला के मरुकिया पंचायत के पुर्वारी टोल मे एक तालाब की उराही हो रही थी ! इसी दौरान मजदूरों को लगभग 4.5 फीट की एक अति प्राचीन चतुर्भुज भगवान विष्णु की मूर्ति मिली ! सामाजिक प्रयास से एक अर्धनिर्मित झोपड़े मे भगवान विष्णु के इस विलक्षण मूर्ति को दिनांक 7 फरवरी 2010 को स्थापित कर दिया गया ! बहुत बड़ा महायज्ञ का आयोजन किया गया दूर दूर से साधू संत और श्रद्धालु भक्त दर्शन को आयें !
मगर आज झोपड़ीनुमा मंदिर की सुधि लेने वाला कोई नहीं है ! समय के साथ भक्तों का आना भी कम होता गया और स्थानीय लोगों के क्रियाशीलता के कारण ये मंदिर अपने अस्तित्व को बचाए हुए है !
भक्तों के उदासीनता के कारण आज इस अतिदुर्लभ भगवान विष्णु के मंदिर का दयनीय स्थिति है ! यदि आप इस प्रतिमा का दर्शन नहीं कियें है तो एक बार अवश्य जाएँ !
मंदिर तक जाने का मार्ग ---
मधुबनी से - भड्चौरा- मरुकिया
दिनांक 2फरवरी 2010 को मधुबनी जिला के मरुकिया पंचायत के पुर्वारी टोल मे एक तालाब की उराही हो रही थी ! इसी दौरान मजदूरों को लगभग 4.5 फीट की एक अति प्राचीन चतुर्भुज भगवान विष्णु की मूर्ति मिली ! सामाजिक प्रयास से एक अर्धनिर्मित झोपड़े मे भगवान विष्णु के इस विलक्षण मूर्ति को दिनांक 7 फरवरी 2010 को स्थापित कर दिया गया ! बहुत बड़ा महायज्ञ का आयोजन किया गया दूर दूर से साधू संत और श्रद्धालु भक्त दर्शन को आयें !
मगर आज झोपड़ीनुमा मंदिर की सुधि लेने वाला कोई नहीं है ! समय के साथ भक्तों का आना भी कम होता गया और स्थानीय लोगों के क्रियाशीलता के कारण ये मंदिर अपने अस्तित्व को बचाए हुए है !
भक्तों के उदासीनता के कारण आज इस अतिदुर्लभ भगवान विष्णु के मंदिर का दयनीय स्थिति है ! यदि आप इस प्रतिमा का दर्शन नहीं कियें है तो एक बार अवश्य जाएँ !
मंदिर तक जाने का मार्ग ---
मधुबनी से - भड्चौरा- मरुकिया
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