Thursday, October 31, 2013

एक अजीब अंदेशा


एक अजीब अंदेशा 

मुझे महसूस हो रहा था .
आंखे भी फरक रही थी .
और बिल्ली भी रास्ता काट रही थी .
रात को कुत्ते के रोने की आवाज से
सहसा मुझे लग रहा था .
की कुछ होने वाला है .


अभी-अभी तूफान गुजरी थी .
हर तरफ बर्बादी का मंजर था .
उजड़े हुए छत उखड़े से पेड़ .
अभी भी वैसे ही थे .
साथ ही था एक श्मशानी सन्नाटा .
अचानक मन उचट रहा था
की जरुर कुछ होने वाला है .


चौक पर दोस्तों के साथ
हाथ मे अखबार लिए
रैली पर चर्चा कर रहा था .
और बगल से गुजरता प्रचार गाड़ी
मुझसे अच्छा समझा रहा था .
उस गाड़ी से निकलता आवाज
मन में हलचल मचा रहा था
की शायद कुछ होने वाला है .


रैलियों का प्रतिस्पर्धा हो रहा था
जिला सम्मेलन राज्य सम्मलेन
ये वो ऐसा वैसा पहले जैसा
बोरा भर के रुपया उझला रहा था .
कहीं टोपी की चमचमाहट दिख रही थी
तो कहीं कंधे पे गेरुआ चादर नजर आ रहा था .
इस टोपी और चादर को देख कर
वाकई मुझे लग रहा था
की निश्चय कुछ होने वाला है .

1 comment: