Saturday, January 24, 2015

उठ अब वक्त पुकारता है



उठ अब वक्त पुकारता है .

बेबसी को अपनी डरा कर

जख्मो को अपने हरा कर

कूद धर्म के समर में

उठ अब वक्त पुकारता है




ईमानदारी टंगा है खूंटी पर

इंसानियत दम तोड़ रहा

तरकस को अपनी तैयार कर

उठ अब वक्त पुकारता है




बेजुबानों के लिए आवाज कर

चल नए सिरे से आगाज कर

खुद को ना लाचार कर

उठ अब वक्त पुकारता है




गैरों की जंजीर से जो आजाद हुई

अपनों के शोषण का शिकार हुई

उस माता का उद्धार कर

उठ अब वक्त पुकारता है




तुझे ही लड़ना है तू ही लडेगा

जुल्म कब तक उनका सहेगा

ना किसी का इंतजार कर

उठ अब वक्त पुकारता है

कर्ज माता का बहनों के राखी का

मांग सजे सिंदूर की लाली का

उतार दे, ना समय बेकार कर

उठ अब वक्त पुकारता है

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