Wednesday, August 14, 2013

फर्ज भारती के पुत्र होने का

फर्ज भारती के पुत्र होने का ...


पन्द्रह अगस्त की पूर्व संध्या पर
दो आंखे दो हाथ और
एक खंडहर सा जिस्म
खुद को लपेटे गुदरी में
धो रही थी कुछ कपड़ो को
नलके पे सड़क किनारे
उसके आँखों में आंसू देख
सवाल उठे मेरे मन में
हिम्मत ही ना हुई
की पूछ लूँ और पोछ दूँ
बस मैं खड़ा रहा और
उस भारती को देखता रहा
उस कपड़े पर जब मेरी नजर पड़ी
चौंक उठा सहसा ये देख कर
की ये तो वही स्कुल ड्रेस है
जो सरकार मुफ्त में देती है
इनके बच्चो को
मगर क्या ये वाकई मुफ्त होता है ?
पूछ लिया मैं उस हिंद की नारी से .
तो गुस्साई , किस ने कहा मुफ्त में ?
दो सौ रूपये दिए किरानी को
आय वाला कागज बनाने को .
चार सौर रूपये दिए टेलर को
बेटे के नाप का सिलाने को .
बनिए से गहना पर लिया है .
दस टका महीने का दिया है .
कल है पन्द्रह अगस्त .
स्कुल में मिठाई बंटेगा .
सारे बच्चे स्कुल ड्रेस में जायेंगे .
हम अपने भारत को भी
एक झंडा दिलाएंगे .
प्रभात फेरी में इस बार
वही तो स्कुल का बैनर थामेगा .
फर्ज भारती के पुत्र होने का
इस बार वो निभाएगा .
कहती हुई वह उठी गर्व से
और फैला दिया कपड़े को दिवार पर .
मैं भी वहाँ से निकल घर को आया .
घर आते ही मेघ जोड़ से गुर्राया .
झमाझम झमाझम बरस रही है .
सबके मन को वर्षा आज हरष रही है .
पर भारती तो बस धुप के लिए तरस रही है .
सोंच रहा हूँ वर्षा आज सारी रात ना हो जाये .
और भारती की मन की मन में बात ना रह जाये .

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