Thursday, August 15, 2013

अभी सुबह हुई नहीं है

अभी सुबह हुई नहीं है .

अभी अभी घोर अंधियारे को
चिर के एक आभा फैली है .
पर लगता है अभी सुबह हुई नहीं है .

अभी निशाचर मौजूद हैं शाखाओं पर
और झाडियों के पीछे घात लगाये .
निडर पथिक चल पड़ा है मंजिलों को
पर लगता है अभी सुबह हुई नहीं है .

कहीं दूर अभी भी गिदरों की भभकी गूंज रही है .
और टीले पर गिद्ध भी मंडरा रहा है .
अब इस अडिग पथिक को कौन बताये
की सुबह अभी हुई नहीं है .

चाँद भी अब चांदनी को समेट रहा है .
तारा भी आवरण को लपेट रहा है .
सियार अभी भी राह पथिक की देख रहा है .
क्या वाकई अभी सुबह हुई नहीं है .

चमगादरों की फरफराहट
झींगुरों की झुनझुनाहट
नदी किनारे के बरगद से आ रही है .
अब मान भी जाओ पथिक की सुबह हुई नहीं है .

No comments:

Post a Comment